Wednesday, April 01, 2015

कैसे कैसे नॉनसेंस!


यह नॉनसेंस कविता “भैया ज़िंदाबाद" से:- एक बार किसी को सुकुमार राय 

की नॉनसेंस कविताओं के बारे में कहा तो वे उत्तेजित होकर बोले - हमारे यहाँ 

कुछ नॉनसेंस नहीं होता। कैसे कैसे नॉनसेंस! एक आजकल स्यापा-

ए-आआपा भी है! दो साल पहले मैंने चंडीगढ़ में व्याख्यान में कहा था कि मैं 

मानता हूँ केजरीवाल बेईमान है। कई टोपीधारी नाराज़ हो गए थे।


कहानी परमाणुनाथ जी की

ज्ञान के प्यासे परमाणुनाथ पहुँचे एक्वाडोर

पुच्छल तारा गिरा वहाँ पर, बड़ा मचा था शोर

किया निरीक्षण परमाणु जी ने मोटी ऐनक चढ़ाए

परमाणुयम तत्व निकाला, नए प्रयोग दिखलाए

सवाल उठा परमाणुयम के परमाणु कहाँ से आए

भौंहें तान परमाणुनाथ तब जोरों से चिल्लाए

ऐसे टेढ़े प्रश्नों पर मैं अम्ल गिरा दूँगा

भून खोपड़ी सबकी मैं भस्म बना दूँगा

वैज्ञानिकों की महासभा ने रखा यह प्रस्ताव

परमाणुनाथ को जल्दी वापस घर भिजवाओ

लौटे वापस परमाणुनाथ हरदा अपने घर

वहाँ बैगन की चटनी पर हैं शोध रहे वे कर।

 

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