Saturday, February 14, 2015

आता है बेहिस प्यार जब


चुपचाप प्यार

चुपचाप
प्यार आता है।

आता ही रहता निरंतर
हालाँकि
हर ओर अँधेरा
धूप भरी दोपहर में 
शिशु सी शरारती मुस्कान ले 
बारबार
चुपचाप प्यार आता है।

रेंग के आता ऊपर या नीचे से
शरीर पर मन पर चढ़ जाता
जहाँ कहीं बंजर सीने में खिल उठता
धड़कनों पर महक बन छाता है।

बेवजह
आते हैं फिर जलजले
आती चाह
फूल पौधों हवा में समाने की,
अंजान पथों पर
भटका पथिक बन जाने की
 
ओ
पेड़, ओ
हवाओं, मुझे
अपनी बाँहों में ले लो

आता
बेहिस प्यार जब
पशु-पक्षी
सुबकते हैं

चुपचाप
प्यार आता है।


- सितंबर 2005

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