Saturday, September 06, 2014

वक्त गुजारता हूँ

जली है एक बार फिर दाल

जली
है एक बार फिर दाल
या
कि इस बार दूध उबला है 
यूँ
ही उबलते जलते हैं शब्द
आदमी
तो महज चूल्हे तक जाकर 
आँच
धीमी कर सकता है

आग
के बुझने से नहीं रुकता
जो
उबलता जलता है
वक्त
गुजारता हूँ
स्वाद
जला मुँह में लिए।
 
(2004; दृश्यांतर 2014) 

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