Saturday, August 16, 2014

यूँ जाते हुए कौन सा जाना होगा

यह पोस्ट रॉबिन विलियम्स की स्मृति को  समर्पित।
यह  कविता 'पाखी' जुलाई अंक में प्रकाशित हुई है.

सड़क पर

1
हम किसी सफर में नहीं हैं
कोई पहाड़ीनदी या बाग नहीं
हम शहर के बीच हैं

ये आम दिन हैं
सड़क पर फ़ोन बजता है
सैंकड़ों वाहनों के बीच बातें करते हैं हम
जीवन के रंगों की बातें हैं
दफ्तर के रंग बच्चों के रंग

जैसे वर्षों से बसंत ढूँढती
औरत का रंग
छत की मुंडेर से आस्मान में चल पड़ते आदमी का रंग
खुद से ही छिपती जाती लड़की का रंग
कुछ रंग वर्षों से धुँधले होते गए हैं
और हम भूल ही जाते हैं उन्हें

यूँ सड़क पर फ़ोन पर
अपने दिनों पर बातें करते हुए
हम मान लेते हैं कि ज़िंदगी अभी भी जीने लायक है

अचानक आती है कवियों की गुहार
कि बाकी लोगों का क्या होगा
अपनी तो सोच ली
बाकी लोगों का क्या होगा।

2
मैं देर से इंतज़ार में हूँ
कि एक दिन इसी सड़क पर
ईश्वर की आवाज आएगी
या चित्रगुप्त
मुझे बतलाएगा
कि ईश्वर आएगा
मेरे सभी तर्कों का खंडन कर
वह प्रतिष्ठित करेगा खुद को

मैं इसी सड़क पर उसे कहूँगा
कि वह हत्यारों को पहचानने से कतराए नहीं
और जब वह आए तो
नाच भी ले तो मुझे क्या

ग़लती से वह आ गया तो
जो सच देखने से कतराते हैं
वह उनके मुँह पर दे मारेगा
सच भरी कड़ाहियाँ

एक बार सही
गलियों से निकल
अनगिनत लोग सड़क पर इकट्ठे हो एक साथ
गाने लगेंगे
कि इंद्रधनुष खिल उठा है
कि जर्जर बलवान और
खूँखार मेमने बन गए हैं

मैं देर से इंतज़ार में हूँ
कि ईश्वर आ ही जाएगा कभी
और इसी सड़क पर मैं सुर में गाने लगूँगा

3
सड़क पर ही ध्यान आता है कि
मैं तुम्हें कुछ लिखना चाहता हूँ
क्या लिखूँ सोच कर
किसी एक विषय पर ध्यान टिकाता हूँ
जब तक मन की डायरी में लिखना शुरू करता हूँ
कोई और विषय आकर
सामने बिछ जाता है

ये सारे विषय सड़क पर जैसे हर पल झरती ठंड की बारिश जैसे हैं
इसलिए लिखना छोड़ बैठता हूँ
यह सोचता कि शायद मेरे न लिखने पर
धूप निकल आए

नहीं लिखता हूँ
तो बची खुची रोशनी
गायब हो जाती है और
ठंड का अँधेरा छाने लगता है
सड़क पर चलता ही रहता हूँ
फ़ोन बजता ही रहता है

कोई है पुकारता हूँ
कोई है जो खबर ले कि अँधेरा छा रहा है

कोई है पुकारता हूँ
अब यह बात सरहदों के बीच की नहीं है
धरती के हर छोर पर अँधेरा छा रहा है

अब बहुत देर हो चुकी है
अँधेरा दूर तक छा गया है
अब यह बात सरहदों के बीच की नहीं है
धरती के हर छोर पर अँधेरा छा रहा है

4
सड़क पर फलवाली है
अगली बार मिलते ही जो शिकवा करेगी
कि मैंने फल नहीं खरीदे
सड़क पर नारियल पानी वाला है
सड़क पर चिढ़ है जो धुँआ छोड़ती गाड़ियों की है
सड़क पर सड़क है
जिसे बच्चे की तरह देख सकता हूँ बार-बार

5
सड़क पर सोलह दिशाओं से वाहन आते हैं
एक सौ अट्ठाइस गलियों में
खड़ा है ईश
क्या करे उन बीस का
जो ज्यादा हैं ईश के नाम
शायद वही हैं यम के धाम

यह कुछ ऐसी पहेली है
कि ईश के एक सौ आठ नाम
दरअसल कवि का विलास भरा खयाल है
सड़क के लिए हर नाम जटिल सवाल है

6
सड़क ने देखा है कि मेरी दुनिया इधर सिमटती चली है
मेरे पढ़ने की सामग्री सिकुड़ गई है
इंटरनेट पर मेरे लिए कुछ भी नहीं होता
मेरे दोस्त मुझे मेल नहीं करते
मुझे फ़ोन करने वालों की तादाद सिफर के करीब है
स्मृतियाँ मुझे विदा कह रही हैं
मैं अब जाने के तरीकों पर सोचूँ

7
कोई यमदूतों से कह दे कि मुझे अब ले जाएँ
मैं कभी भी चले जा सकता हूँ
हाल की कोई हिट धुन गाते हुए
या एक दो एक लेफ्ट राइट लेफ्ट मार्च भी कर सकता हूँ जाते हुए
आकाश से पलकों की झपक में आ उतरे
अंतरिक्ष वाहन
और सड़क के सँभलने से पहले ही उठा लिया जाऊँ मैं

पास से कोई गाते हुए गुजरता है
'अजीब दास्ताँ है ये
कहाँ शुरू कहाँ खतम'

तुम कहती हो कि यूँ जाते हुए कौन सा जाना होगा
इससे बेहतर और जीना क्या होता है
कि कोई मार्च करे और फिल्मी धुन गाए
जब जाना होगा तब धुन थम जाएगी
कदम पड़ जाएँगे शिथिल

यह सब दूर से ही कहती रहोगी
कहना ही हो तो पास आकर कहो कि
हम साथ साथ रो सकें
इतनी दूर से कैसे टपकाऊँ आँसू तुम्हारी गोद में
कैसे चूमूँ तुम्हारे गालों पर थमे आँसू
लोगबाग देखेंगे तो क्या कहेंगे

जाने से पहले जीता रहूँगा
यूँ दूरी में नजदीकी
या कि इस तरह जीते हुए
जाता रहूँगा लगातार

8
कैसे भ्रम में हूँ
सड़क ही जीती है दरअस्ल
मैं नहीं।

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