Sunday, April 01, 2012

आशिकी में नीली बैंगनी हो चुकी राहें, कविता और क्रांति

एड्रिएन रिच का चले जाना एक युग का अंत है। मैंने बहुत ज्यादा तो नहीं पढ़ा, पर जितना पढ़ा, उससे वे मेरी प्रिय कवि बन गईं। सत्ताईस साल पहले विदेश से लौटते हुए उनकी कविताओं की एक मोटी किताब ले आया था। उन दिनों यहाँ उनको कोई जानता न था। एक बंदे ने किताब ली और बहुत बाद में उसे लौटाने को कहा तो पता चला कि उसने वह किताब कहीं सड़क से ली थी। बाद में एक उनके वैचारिक आलेखों की एक किताब रह गई थी। कभी कभार पढ़ता, फिर वह किताब भी बेटी अपने साथ ले गई। इसलिए इधर कई सालों से उनको पढ़ा न था।

उनकी एक कविता का अनुवाद करने की कोशिश कर रहा हूँः

ड्रीमवुड (सपनकाठ)

टाइपिंग स्टैंड की पुरानी, सस्ती, खुरदरी लकड़ी में
एक ज़मीं का विस्तार है जिसे केवल एक बच्चा
या बच्चे की बढ़ी उम्र की छवि, एक कवि, सपना देखती
एक स्त्री, देखती है, जब कि उसे दिन की आखिरी रीपोर्ट
टाइप करनी चाहिए। अगर यह एक नक्शा होता, जिसे कि
उसे लगता है कि सफर के लिए याद रखना है, तो इसमें धुँधले
रगिस्तानों में विलीन होते ढालू टीले दर टीले, कभी कभार
कहीं हरीतिमा और कदाचित कोई छोटा पोखर दिखते।
अगर यह एक नक्शा होता, तो यह उसके जीवन के
आखिरी पड़ाव का नक्शा होता; विकल्पों का नहीं,
बल्कि एक बड़े विकल्प, जिसे उसने चुना, के भिन्न
स्वरूपों का नक्शा होता। वह ऐसा नक्शा होता,
जिसमें वह अपने सैलानी क्षणों को देख सकती,
उन राहों को जो आशिकी में नीली बैंगनी हो चुकी हैं,
जिनसे वह जान सकती है कि कविता क्रांति नहीं होती,
क्रांति की ज़रूरत को समझने का जरिया होती है। अब
जब ब्रूकलिन गैस कंपनी की थोक में बनाए, थोक में
पर मजबूत और टिकाऊ बने, इस लकड़ी के स्टैंड को
यहाँ यही होना है, इतना सादा इतना हठी स्वप्नचित्र,
तो उसे लगता है कि सपना और काठ जुड़ जाएँ,
और यही कविता है और
यही देर से तैयार की गई रीपोर्ट है।

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