Monday, October 12, 2009

सोचना यह है कि हम आज कहाँ हैं।

लंबे समय से दिमाग में बातें चलती रहीं कि ब्लाग में डालना है। 'द हिंदू' में तनवीर अहमद का अपनी नानी को उनके भाई बहन से मिलवाने पर यह मार्मिक लेख पढ़ कर थोड़ा सा लिखा भी, फिर छूट गया। लेख पढ़ कर अपने और साथियों के कुछ प्रयासों की याद आ गई, जो सीमा के दोनों ओर के आम लोगों के बीच संबंध स्थापित करने की दिशा में थे। वह फिर कभी पूरा लिखा जाएगा। फिर हाल में दो खबरें ज्यादा ध्यान खींच गईं - एक तो human development index (मानव विकास सूची) में भारत और पाकिस्तान का क्रमशः १३४वें और १४१वें स्थान पर होना, और इस खबर के दूसरे ही दिन भारतीय मूल के वैज्ञानिक को रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा होनी।

इसके कुछ ही दिन बाद संस्थान में आए एक वक्ता द्वारा मानव के पूर्णता की ओर जाने बातचीत करते हुए यह कहना कि दो सौ साल पहले विश्व स्तर पर घरेलू सकल उत्पाद में भारत का हिस्सा २६% था (वक्ता ने कहा कि चीन का हिस्सा इससे कम था) और आज वह 0.८६% है, यह सब बातें दिमाग में चल रही थीं। आँकड़ें सही होंगे; अक्सर इस तरह की बातें ऐसे कही जाती है कि सोचो कभी सोचा था तुमने? सोचने पर दरअस्ल बात इतनी बड़ी निकलती नहीं जितनी बनाई गई होती है। आखिर औद्योगिक क्रांति के पहले पश्चिमी मुल्कों में लोग काफी फटेहाल थे, यह कौन सी नई बात है। पर हम आज की तुलना में अधिक समृद्ध नहीं थे, हम तब उनकी तुलना में कम फटेहाल थे। राजा महाराजाओं के पास लूट का माल यहाँ भी था, वहाँ भी था। आम लोग वहाँ के बनिस्बत यहाँ कम कुदरत के मारे थे।

मानव विकास सूची में चीन अब ७१वें स्थान पर है। सोचना यह है कि हम आज कहाँ हैं।

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